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पहली बार निर्यात आंकड़ा पंहुचा 10000 हजार करोड़ के पार –पढ़े कारपेट कोम्पक्ट का नया अंक ;

कालीन निर्यात संवर्धन परिषद् के चुनाव में आज सभी ६ सदस्यों को निर्विरोध निर्वाचन | उत्तर प्रदेश से प्रथम उपाध्यक्ष सिद्धनाथ सिंह और तीन सदस्य में अब्दुल रब जफर हुसैनी, राजेंद्र मिश्र ,और जम्मू कश्मीर से सेकेंड उपाध्यक्ष उमर हमीद सहित एक सदस्य पप्पू वाटल और रेस्ट ऑफ़ इंडिया से बोधराज मल्होत्रा ||Amendment In Duty Drawback Rates On Carpets And Other Floor Coverings Of Man Made Fibres For The Year 2016-17 Effective From 15th January, 2017. ,,सीईपीसी के चुनाव की सरगर्मी बढ़ी ,,डोमोटेक्स में सम्मानित भदोही के नुमान वजीरी से मिले मुख्यमंत्री || DOMOTEX - दो भारतीय कालीनों को मिला बेस्ट पानीपत में विशेष कारपेट कलस्टर स्थापित होगा : स्मृति || कि अब तक पानीपत के DOMOTEX 2017 Winners of the Carpet DOMOTEX 2017 AFTER REPORT - puts fresh wind in the sails of the global floor coverings industryDesign Awardsडिजाईन अवार्डत्री

सस्ते उत्पादों से पानीपत के सस्ते दरी।और कालीन उद्योग् प्रभावित

पानीपत। पानीपत की कॉटन दरी व आसन (डयूरी व रग्‍स) बनाने वाली इकाइयों को इन दिनों एक अजीब सी समस्‍या का सामना करना पड़ रहा है। विदेशी बाजारों (विशेषकर यूरोप और अमेरिका) से निम्‍न गुणवत्‍ता वाली दरियों की मांग लगातार बढ़ रही है। इससे पानीपत की कारपेट इंडस्‍ट्री की मुश्किलें बढ़ गई हैं। विदेशी खरीददार कारपेट निर्माताओं पर गुणवत्‍ता में कमी लाने का दवाब बना रहे हैं और गुणवत्ता से समझौता करने वालों की निर्यात बिक्री लगातार घट रही है। बिक्री में कमी के कारण पानीपत में दरी व आसन बनाने वाली तकरीबन 40 फीसदी इकाइयां बंद हो चुकी हैं।

600 इकाइयां हैं कार्यरत
शिवालिग रग्‍स के संचालक सतिंदर लीखा के मुताबिक पानीपत में सबसे ज्यादा कॉटन दरी का उत्‍पादन होता है। यहां वर्तमान में 500 से 600 कॉटन दरी बनाने वाली इकाइयां हैं, जिनका सालाना कारोबार 600 से 700 करोड़ रुपए है। पिछले कुछ वर्षों से इस उद्योग की हालत खराब है। लीखा के मुताबिक पहले यहां तकरीबन 1,000 दरी इकाइयां थीं, जो पूरी तरह से घरेलू बाजार पर ही निर्भर थीं। पिछले पांच-छह वर्षों में घरेलू बाजार के साथ-साथ निर्यात मांग लगातार कम होने से लगभग 40 फीसदी इकाइयां बंद हो गई हैं।

गुणवत्‍ता में आई कमी
दरी निर्माण में रिसाइकिल्‍ड यार्न का उपयोग बढ़ने से इसकी गुणवत्ता पहले से घट गई है। इतना ही नहीं सिंथेटिक और पोलिस्टर धागे के अत्यधिक उपयोग ने भी उत्पादों की गुणवत्ता विदेशों में घटा दी है। अभय इंटरप्राइजेज के डायरेक्टर अभय ठक्‍कर के मुताबिक अधिकांश खरीददार बिना गुण्‍वत्‍ता जांचे ही उत्पादों की कीमत तय करते हैं, जिस पर आपूर्ति करना संभव नहीं होता।

चीन-तुर्की की अमेरिका और यूरोप में बढ़ी पैठ
पानीपत हैंडलूम मैन्युफैक्चरर्स एंड एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष रमेश वर्मा बताते हैं कि अमेरिका और यूरोप में चीन और तुर्की के बढ़ते दखल के चलते पानीपत के निर्यातकों के पास अब केवल 60 फीसदी ही विदेशी ग्राहक बचे हैं। विनायक क्रिएशन के पंकज दीवान के मुताबिक चीन में यार्न की कीमत पर दरी बन जाती है, जो पानीपत की तुलना में काफी सस्‍ती होती है। भारत में यार्न की कीमतों में एक दिन में ही 10 रुपए प्रति किलोग्राम तक का उतार-चढ़ाव आ जाता है, ऐसे में सस्‍ते उत्‍पाद बनाना संभव नहीं होता। पानीपत में बनी दरी और आसन की कीमत 2,500 रुपए तक होती है, जबकि चीन के उत्‍पाद इसकी तुलना में 25 फीसदी तक सस्‍ते होते हैं।

निर्यात में आई गिरावट
वित्‍त वर्ष 1999-2000 में पानीपत से हैंडलूम व होमफर्निशिंग का कुल निर्यात 680 करोड़ रुपए था, जो वित्‍त वर्ष 2007-08 में बढक़र 3,000 करोड़ रुपए पर पहुंच गया। पिछले पांच-छह वर्षों से निर्यात कारोबार में न तो वृद्धि हो रही है और न ही कोई ज्‍यादा गिरावट आ रही है। लेकिन इस साल निर्यातकों को यह 3,000 करोड़ का आंकड़ा भी पूरा होता नहीं दिखाई दे रहा है। यूरोप और अमेरिका के बाजारों में मंदी की वजह से पानीपत के उत्‍पादों की मांग में 20-25 फीसदी की गिरावट आ चुकी है। पानीपत एक्‍सपोर्टर्स एसोसिएशन के अध्‍यक्ष प्रेमसागर विज के मुताबिक चालू वित्‍त वर्ष में निर्यात कारोबार 3,000 करोड़ रुपए तक पहुंचना मुश्किल होगा। पानीपत के कुल निर्यात कारोबार में अमेरिका और यूरोप की संयुक्‍त हिस्‍सेदारी तकरीबन 70 फीसदी है।
शांत हैंडलूम इंडस्‍ट्रीज प्राइवेट लिमिटेड के अनुराग कुमार के मुताबिक अमेरिका और यूरोपीय देशों से निर्यात ऑर्डर में 30 फीसदी तक की गिरावट आ चुकी है। उन्‍होंने बताया कि दो-तीन साल पहले तक उनके द्वारा प्रति माह एक लाख टन कॉटन दरी और आसन का निर्यात होता था, जो अब घटकर प्रति माह 60 से 70 हजार टन ही रह गया है। 

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