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पहली बार निर्यात आंकड़ा पंहुचा 10000 हजार करोड़ के पार –पढ़े कारपेट कोम्पक्ट का नया अंक ;

कालीन निर्यात संवर्धन परिषद् के चुनाव में आज सभी ६ सदस्यों को निर्विरोध निर्वाचन | उत्तर प्रदेश से प्रथम उपाध्यक्ष सिद्धनाथ सिंह और तीन सदस्य में अब्दुल रब जफर हुसैनी, राजेंद्र मिश्र ,और जम्मू कश्मीर से सेकेंड उपाध्यक्ष उमर हमीद सहित एक सदस्य पप्पू वाटल और रेस्ट ऑफ़ इंडिया से बोधराज मल्होत्रा ||Amendment In Duty Drawback Rates On Carpets And Other Floor Coverings Of Man Made Fibres For The Year 2016-17 Effective From 15th January, 2017. ,,सीईपीसी के चुनाव की सरगर्मी बढ़ी ,,डोमोटेक्स में सम्मानित भदोही के नुमान वजीरी से मिले मुख्यमंत्री || DOMOTEX - दो भारतीय कालीनों को मिला बेस्ट पानीपत में विशेष कारपेट कलस्टर स्थापित होगा : स्मृति || कि अब तक पानीपत के DOMOTEX 2017 Winners of the Carpet DOMOTEX 2017 AFTER REPORT - puts fresh wind in the sails of the global floor coverings industryDesign Awardsडिजाईन अवार्डत्री

चीन और ऑस्‍ट्रेलि‍या की ओर चले भारत के कारपेट निर्माता, नए बाजार की तलाश में इंडस्‍ट्री


नई दिल्‍ली। यूरोप और रूस से घटते निर्यात से परेशान भारतीय हैंड-मेड कारपेट इंडस्‍ट्री ने अब नए बाजारों की तलाश शुरू कर दी है। इंडस्‍ट्री का फोकस चीन, ऑस्‍ट्रेलिया और दक्षिण अमेरिकी देशों की ओर है, जहां इंडस्‍ट्री को बेहतर डिमांड के साथ कारोबारी मौके हासिल हो रहे हैं। हालांकि यहां मुकाबला मशीन मेड कारपेट और फ्लोरिंग से है। जिनकी कीमत हैंड मेड कारपेट के मुकाबले 40 से 50 फीसदी कम हैं। ऐसे में पुराने मार्केट पर पकड़ बनाने के साथ कारोबारी नए मार्केट पर काबिज होने के लिए प्रॉडक्‍ट रेंज में बदलाव कर रहे हैं। कारोबारियों के अनुसार यूरोप, रूस और अमेरिका से हैंडमेड कारपेट एक्‍सपोर्ट डिमांड इस साल 20 से 30 फीसदी तक गिरी है। लेकिन नए मार्केट में भारतीय कालीन की डिमांड जिस तेजी से बढ़ रही है, उसे देखते हुए संभव है कि इंडस्‍ट्री पश्चिम में हुए नुकसान की भरपाई कर सके।
यूएस और यूरोप के बाद नए बाजार की तलाश
कारपेट एक्‍सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल के वाइस चेयरमैन मुकेश कुमार गुम्‍बर के अनुसार भारतीय कारपेट इंडस्‍ट्री फिलहाल अमेरिका और यूरोप पर निर्भर है। दुनिया के कारपेट बाजार में 35 फीसदी की हिस्‍सेदारी रखने वाले भारत के कुल एक्‍सपोर्ट में इन देशों की हिस्‍सेदारी 60 फीसदी से भी अधिक है। लेकिन यूरोप में आर्थिक मंदी के चलते निर्यात को काफी नुकसान पहुंचा है। वहीं ईरान, पाकिस्‍तान और नेपाल से भी देश को कड़ी टक्‍कर मिल रही है। इसके अतिरिक्‍त चीन और टर्की के मशीन मेड कारपेट भी भारतीय कालीन का बाजार छीन रहे हैं। ऐसे में काउंसिल भी नए बाजार तलाश रही है। निर्यातक लैटिन अमेरिकी और मिडिल ईस्‍ट देशों, विशेषकर वेनेजुएला, पनामा, ब्राजील, यूएई, दुबई आदि पर ध्‍यान दे रहे हैं।हालांकि यह एक लंबी प्रक्रिया है। लेकिन इसका फायदा इंडस्‍ट्री को जरूर होगा।
कॉम्‍पटीटर के साथ कंज्‍यूमर बना चीन
जम्‍मू कश्‍मीर में बारामुला के एक्‍सपोर्टर और दीवान फैब्रिक के चेयरमैन अशरफ चिब बताते हैं कि मशीन से तैयार होने वाले कारपेट के बाजार में चीन दुनिया का सबसे बड़ा खिलाड़ी है। लेकिन इसके बाद भी भारतीय निर्माताओं के लिए चीन में बेहतर कारोबारी मौके बन रहे हैं। यहां वूलन व सिल्क मिश्रित कारपेट काफी पसंद किए जा रहे हैं। कश्‍मीर और राजस्‍थान से हर साल 200 से 300 करोड़ के कारपेट निर्यात किए जा रहे हैं।हालांकि चीन सरकार द्वारा लगाई गई इंपोर्ट ड्यूटी के चलते इंडस्‍ट्री को चीन में पैर जमाने में मुश्किल आ रही है। लेकिन फिर भी डिमांड को देखते हुए एक्‍सपोर्टर चीन में संभावनाएं तलाश रहे हैं।
नए बाजारों की मदद से इंडस्‍ट्री को मिली ग्रोथ
मिर्जापुर के कालीन कारोबारी मिर्जा इदरीस के मुताबिक लगातार नए बाजार की खोज इंडस्‍ट्री की पहली जरूरत है। हमें इसका फायदा भी मिल रहा है। कालीन निर्यात संवर्धन परिषद (सीईपीसी) लगातार देश में और भारत से बाहर बायर सेलर्स मीट का आयोजन कर रहा है। जिसके चलते इंडस्‍ट्री हर साल 10 से 15 फीसदी की दर से ग्रोथ कर रही है। सीईपीसी के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2009-10 में जहां 3,512.88 करोड़ रुपये का निर्यात किया गया वहीं यह 2012-13 के दौरान 6000 करोड़ पहुंच गया। मौजूदा दौर की बात की जाए तो भारत से हैंडमेड कार्पेट का निर्यात8000 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच गया है।
मशीन से बने सस्‍ते कारपेट का बढ़ता बाजार
भदोही के कारपेट एक्‍सपोर्टर एसपी बंसल के अनुसार दुनिया भर में भारत, ईरान, पाकिस्‍तान ही हैंडमेड कालीन तैयार कर रहे हैं। हाथ से बना होने के चलते इसकी लागत अधिक आती है। वहीं चीन और टर्की जैसे देश मशीन से कालीन और फ्लोरिंग तैयार कर रहे हैं। जिनकी लागत बहुत कम आती है। इसे देखते हुए भारत में भी कई निर्माताओं ने मशीन से कारपेट तैयार करना शुरू कर दिया है। लेकिन जब तक सरकार मशीनों और मटेरियल पर रियायत नहीं देती। तब तक मशीन मेड कालीन से टक्‍कर ले पाना मुश्किल है।
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